शहरी विरासत
विश्व के किसी अन्य शहर की तुलना में दिल्ली में संस्कृति, सभ्यता, इतिहास और इसमें निर्मित वर्तमान इमारतों की कई परतें हैं। इसने सात शहरों को पाला-पोसा और विभिन्न सम्राटों एवं तत्कालीन लोगों की मांगों की आपूर्ति हेतु इसे बार-बार बनाया गया।
इस प्राचीन आधुनिक शहर की सम्मोहक और विस्मयकारी विशेषता है कि यह निर्मित इमारतों का एक जटिल संचयन है, जो विविध ऐतिहासिक कालावधियों के विभिन्न संस्तरणों के रूप में प्रमाण के तौर पर अस्तित्वमान है।
इन परतों को उनके डिजाइन, निर्माण-तकनीक, सामग्री और वास्तुशास्त्रीय संघटकों के आधार पर सहजता से विख्यात किया जा सकता है जो आधारभूत प्रारूप में विविधता को समावेशित करते हैं। इनका प्रसार गुम्बदों, ब्रैकेट्स छज्जों, स्तम्भों, प्लिन्थ फिनिशिज़ आदि में हैं।
हालांकि स्वतन्त्रयोत्तर काल के विकास परिदृश्य ने ऐतिहासिक क्षेत्रों को बहुत बुरा प्रभावित किया। इसने शहर के परिवेश को भी विघटित किया है। इसलिए दि.वि.प्रा. ने न केवल विकास की चुनौतियों को पूरा किया अपितु शहर के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए भी अपनी भूमिका का विस्तार किया।
यद्यपि ज्ञात स्मारकों के संरक्षण और सुरक्षा का दायित्व भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण पर है, दि.वि.प्रा. ने दिल्ली की शहरी विरासत की सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक महत्व के अज्ञात क्षेत्रों को खोजना आरंभ किया है।
तब दिसंबर 1993 में, दि.वि.प्रा. ने शहरी विरासत पुरस्कार स्थापित किया ताकि दिल्लीवासी ऐतिहासिक समृद्ध परम्पराओं एवं दिल्ली शहर की अद्वितीय इमारतों का महत्व समझें, उसका सरंक्षण करें, और गौरव का अनुभव करें।
यह पुरस्कार उन व्यक्तियों अथवा संस्थाओं को सम्मानित करने एवं मान प्रदान करने के लिए दिया जाता है जो अपने समय की पुरानी इमारतों का संरक्षण करते हैं एवं उसके द्वारा शहर के सौंदर्य में संववृद्धि करते हैं।
इसका निर्णय एक जूरी द्वारा किया जाता है, जिसमें दिल्ली के विख्यात नागरिक, प्रशासक, शहर योजनाकार और संरक्षक होते हैं।
दि.वि.प्रा. ने अबतक 17 इमारतों को पुरस्कृत/अनुशंसित किया, जिन्होंने अपनी वास्तुशास्त्रीय छवि, सामाजिक मूल्य और अपने समय की परम्परा का प्रदर्शन किया और वे पूरी तरह सुसज्जित हैं।
शहरी विरासत
प्रथम पुरस्कार: 1993
सराहना::
बालक माता सेटर सेंट स्टीफेन्स चर्च पुरानी रेलवे स्टेशन एल.एन. गिरधारीलाल स्कूल मेटकाफ हाउस।
1862 में गाजी-उद-दिनखान ने एक मदरसे के पास एक मस्जिद की नींव डाली, शाहजहानाबाद के अजमेरी दरवाजे के बिल्कुल बाहर। अन्यों से भिन्न यह मदरसा मकबरे से पृथक् और स्वतन्त्र है। इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे गाजी-उद-दिन मदरसा अथवा एंग्लो अरेबिक स्कूल अथवा दिल्ली कॉलेज अथवा जाकिर हुसैन कॉलेज। यह इमारात स्कूल एंव कॉलेज दोनों के लिए प्रयोग में आती रही थी। यह इमारत 1830 और 1840 के दौरान ‘‘ दिल्ली पुनरूद्धार ’’ का केन्द्र थी। कई विख्यात दिल्ली वाले इसके पूर्व छात्र रहे हैं। इसे इंडो सरसनिक शैली में बनाया गया है, यह संकुल वास्तुशास्त्रीय दृष्टि से डिजाइन में समृद्ध है इसमें मदरसे के लिए वांछित संघटक मौजूद हैं जैसे मस्जिद, मतलब, एक पुस्तकालय और विद्यार्थियों के लिए हुजरस का दो तलों का होना। यह इमारत परम्परागत मुग़ल स्कूल के कुछ शेष नमूनों में से है। इसका विभिन्न तरीकों से प्रयोग किया गया है, परन्तु प्रमुख उपयोग सदैव शैक्षणिक रहा है। उच्चशिक्षा की अंग्रेजी व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ऐतिहासिक इमारत के साथ-साथ कुछ परिवर्धन-परिवर्तन किए गए हैं।
रूचि और देखभाल के साथ सार्वाधिक मरम्मतें की गई हैं। यह इमारत धार्मिक-शैक्षिक संपन्नता का सुन्दर उदाहरण है। वास्तुशास्त्रीय रूप से सुन्दर डिजाइन वाली इमारत, प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान के गौरव को दर्शाती है।
प्रथम पुरस्कार: 1994
सराहना: ऑबरॉय मेडन्स होटल, खन्नाज़ हाउस, डॉ. अन्सन्स हाउस, मारवाडी पब्लिक लाइब्रेरी।
1880 में हकीम अजमल खां के बड़े भाई ने मूलरूप से चूडीवालान, दिल्ली में “ मदरसा तिबिया ” की शुरूआत की थी। यह पूरे देश में एक स्थान पर आयुर्वेदिक और यूनानी आयुर्विज्ञानों का एक साथ प्रशिक्षण देने वाले संस्थान के रूप में जाना जाता है।
29 मार्च, 1916 को उस समय के भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंगल द्वारा इस परिसर की नींव डाली गई थी। इस परिसर की इमारतें उस समय के प्रचलन के मिश्र रूप को दर्शाती है यथा नव शास्त्रीय, उपनिवेशवादी एवं मुगलशैली। 13 फरवरी, 1921 को इसका उद्घाटन महात्मा गांधी द्वारा किया जाना, इस इमारत की एक अन्य विशेषता है। यह ब्रिटिश सरकार द्वारा आयुर्वेदिक और यूनानी आयुर्विज्ञानों को पहचान दिए जाने का भी प्रतीक है। इस इमारत को आज भी न्यूनतम आपत्तिजनक परिवर्तनों के साथ महाविद्यालय एवं अस्पताल के रूप में उपयोग किया जाता है।
प्रथम पुरस्कार: 1995
सराहना: रामजस वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय संख्या 2, लेडी रीडिंग हैल्थ विद्यालय
वर्तमान विक्टोरिया स्कूल, परिसर में इसकी शुरूआत 125 वर्ष पूर्व परित्यक्त महिलाओं और बालकों को आश्रय देने के लिए छोटे घर के रूप में हुई थी। उस समय सैंट मैरीहोम ‘‘रिफ्यूजी होम’’ के रूप में जाना जाता था।1900 में इसका नामकरण सैंट मैरीहोम के रूप में किया गया, जिसने महिलाओं और बच्चों की विशेष सेवा की है। यह इमारत 1925 में बनी, जिसमें दो कन्या विद्यालय भी हैं। यह मिश्रित पत्थर और ईंटों की चिनाई से निर्मित है। इसके मेहराबदार बरामदे में अर्धगोलाकार ईंटों से बने मेहराब-नीले पत्थर के स्तम्भों और दीवारों पर स्थित हैं, जो उस समय की प्रचलित शैली थी। इसकी संरचनात्मक तकनीक और स्थानीय पदार्थो का प्रयोग यह दर्शाता है कि इसमें मितव्ययता का मुख्य ध्यान रखा गया है। इमारत का रखरखाव आज भी न्यूनतम आपत्तिजनक परिवर्तनों बदलावों के साथ किया जाता है।
प्रथम पुरस्कार: 1996
सराहना: अहाता काले साहिब की हवेली, मोरी वाली हवेली।
यह हवेली 1916 में निर्मित की गई, जो बाद में वर्तमान स्वामी के परदादा द्वारा खरीदी गई।
सेन्ट्रल कोटयार्ड के चारों ओर हवेली योजना के आधार पर बनी दोमंजिल (डबलस्टोरी) हवेली में धौलपुर पत्थरों से बना अर्धवृत्ताकार नक्काशीदार सुसज्जित भव्यद्वार है। सेन्ट्रल कोटयार्ड के चारों ओर बने कक्षों के द्वार अर्धवृत्ताकार नक्काशीदार सुसज्जित भव्यद्वार है। सेन्ट्रल कोटयार्ड के चारों ओर बने कक्षों के द्वार अर्ध अर्धवृत्ताकार एवं नक्काशीदार हैं। खिडकियाँ नुकीली और वक्राकार हैं। रोशनदानों में रंगीन शीशे लगे हैं। प्रथम तल की प्रोजेक्टिंग बालकनी नक्काशीदार पत्थरों के ब्रेकेट से रोकी गई है। यह निर्माण कार्य ईंटों की दीवार पर पलस्तर करके बना है। फर्श मार्बल का है और छत पर पत्थरों के स्लैब बिछे हैं जिन्हें लकड़ी के बीम और ज्वाइंटों से मजबूत किया गया है।
प्रथम पुरस्कार: 1997
सराहना: सुल्तान सिंह बिल्डिंग,
सैंट जेवियर स्कूल बिल्डिंग, इस क्षेत्र में बहुत कम इमारतों की ऐसी औपनिवेशिक शैली है, जोकि भारत में होटल उद्योग की शुरूआत को दर्शाती है। इसका निर्माण वर्ष 1900 (लगभग) में हुआ। यह इमारत वास्तव में सेसिल होटल था। वास्तविक होटल की दो इमारतें ही शेष हैं। इन दोनों दो मंजिला इमारतों के अलग नक्शे प्लान फोर्मस हैं। एक आयताकार नक्शा वास्तव में होटल का बैंक्विट हॉल था और जिसे अब विद्यालय के सभागार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वास्तविक लकड़ी से बना फर्श और गुंबदनुमा छत अभी तक अक्षुण्ण है। अन्य इमारत में भूतल पर मुख्य बरामदा वक्राकार है और प्रथम तल पर स्तंभावली है। यह होटल के अतिथि कक्ष का एक भाग होना चाहिए और जिसे मिशन के जनक के आवासीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके निर्माण में ईंटों से बनी पलस्तर की दीवारे, सीमेन्ट किया गया फर्श और जैक अर्क रूफिंग की गई है।
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