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"हम गर्व से भारत की राजधानी का निर्माण करते हैं"
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दिल्ली विकास प्राधिकरण को दिल्ली के विकास को प्रोत्साहित एवं सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था।

दिल्ली विकास प्राधिकरण ने दिल्ली के व्यवस्थित एवं तीव्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। शहर में 11 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है।

दिल्ली, अंग्रेजों की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने के पश्चात् वर्ष 1911 में सरकारी गतिविधियों का केन्द्र बनी। राजधानी के लिए प्रस्तावित प्रारंभिक स्थान उत्तरी रिज के उत्तर में था। बाद में इसे रायसीना हिल्स के आस-पास वर्तमान स्थान में परिवर्तित कर दिया गया।

सुविख्यात नगर योजनाकार एडवर्ड लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने वर्ष 1912 में नई दिल्ली नगर की योजना बनाई।

वर्ष 1922 में दिल्ली कलक्ट्रेट में एक छोटा नजूल कार्यालय स्थापित किया गया, जिसमें 10 से 12 कर्मचारी थे। यह शहर के नियोजित विकास को नियंत्रित करने वाला पहला प्राधिकरण था।

संयुक्त प्रांत सुधार अधिनियम, 1911 के प्रावधानों के अंतर्गत गठित नजूल कार्यालय को भवन निर्माण कार्यों को नियंत्रित करने और भूमि उपयोग को विनियमित करने के लिए वर्ष 1937 में सुधार न्यास में परिवर्तित कर दिया गया।

वर्ष 1947 में भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की और इसके परिणाम स्वरूप लोगों के प्रवास के कारण दिल्ली की जनसंख्या 1951 मे 7 लाख से बढ़कर 17 लाख हो गई। खुले स्थानों पर प्रवासियों ने कब्जा कर लिया। इस कारण नागरिक सेवायें एक तरह से चरमरा गई। उस समय के दो स्थानीय निकायों- दिल्ली सुधार न्यास और नगर निगम निकाय के पास इस बदलते परिदृश्य का सामना करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे।

दिल्ली की योजना तैयार करने के लिए और इस के तीव्र एवं अव्यवस्थित विकास को रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने वर्ष 1950 में जी.डी. बिडला की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। इस समिति ने दिल्ली के सभी शहरी क्षेत्रों के लिए एक एकल नियोजन एवं नियंत्रण प्राधिकरण की अनुशंसा की।

परिणाम स्वरूप, (दिल्ली भवन निर्माण कार्य नियंत्रण) अध्यादेश, 1955 (जिसका स्थान दिल्ली विकास अधिनियम 1957 ने लिया) प्रस्थापित करके दिल्ली विकास (अनंतिम) प्राधिकरण – डीडीपी एकागठन किया गया, जिसका प्रमुख उद्देश्य योजनानुसार दिल्ली का विकास सुनिश्चित करना था।